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नमस्कार दोस्तों आपका हार्दिक स्वागत हैं. 

हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार 84 कोटि यौनियो के बाद मनुष्य जीवन बड़ी कठिनाई से मिलता हैं. जो भी विशवास हो मगर इस बात में कोई संदेह नहीं हैं कि समस्त जीवों में मानव श्रेष्ठ हैं. उसकी श्रेष्ठता का कारण मस्तिष्क हैं जो अन्य जीवधारियों के पास उतना विकसित नहीं होता हैं जिससे वे विचार कर सके अथवा कोई निर्णय कर पाए.


यदि समाज के एक तबके के पास सुख सुविधा हो और दूसरे लोग कष्ट से जीवन यापन कर रहे है तो वह समाज निश्चय ही दुर्गति को प्राप्त होगा. दुःख की तासीर ही उतनी कष्टदायक होती है कि जो लोग भी सुख सम्पन्न है वे पीड़ितों को दुखी देखकर सुखी जीवन नहीं जी पाएगे.


रोग, गरीबी या प्रताड़ना से युक्त सामाजिक वातावरण में कभी भी सुख सम्रद्धि का वास नहीं होता हैं. समाज की खुशहाली में इन बाधकों को तभी दूर किया जा सकता हैं.


ऐसे छोटे छोटे प्रयासों से ही सामाजिक आन्दोलन खड़े कर बड़े सुधार किये जा सकते हैं. मनुष्य जन्म पाकर हमें जब भी अवसर मिले किसी की मदद के लिए आगे आना चाहिए, तभी सच में हमारा मनुष्य के रूप में जीवन सफल माना जाएगा.





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